इलायची (बड़ी इलायची), जिसे अंग्रेज़ी में Cardamom कहा जाता है, मसालों की दुनिया में एक अहम स्थान रखती है। यह Zingiberaceae परिवार की फसल है और मुख्य रूप से सिक्किम और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में उगाई जाती है। सिक्किम इस उत्पादन में देश का अग्रणी राज्य है और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में इसकी बड़ी मांग है। अब नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में भी इसकी खेती तेजी से बढ़ रही है।
इलायची के लिए उपयुक्त जलवायु
- इलायची एक छायाप्रेमी पौधा है, जो उप-हिमालयी नम उपोष्णकटिबंधीय वनों में पाया जाता है।
- सालाना 2000–3500 मिमी वर्षा और लगातार नमी इसकी खेती के लिए जरूरी है।
- तापमान 6°C से 30°C तक उपयुक्त रहता है।
- पाला और ओलावृष्टि पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं।
- लगातार बारिश फूल आने पर कीटों की गतिविधि घटा देती है, जिससे फलन प्रभावित हो सकता है।
इलायची के लिए मिट्टी
इलायची मुख्य रूप से जंगल की दोमट मिट्टी में उगती है।
- मिट्टी का pH: 5.0–5.5 (अम्लीय)
- जैविक कार्बन: 1% से अधिक
- नाइट्रोजन समृद्ध और मध्यम स्तर का फॉस्फोरस व पोटाश
- अच्छी जल निकासी आवश्यक है ताकि पौधों को जल-जमाव न हो।
इलायची की प्रमुख किस्में
भारत में इलायची की कई किस्में पाई जाती हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- रैम्से: ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त, छोटे कैप्सूल।
- रामला: गहरे गुलाबी कैप्सूल, फसल अक्टूबर में।
- सॉनी: बड़े कैप्सूल, फूल मार्च–मई में, फसल सितंबर–अक्टूबर।
- वारलांगेय: बड़े आकार के कैप्सूल, ऊँचे क्षेत्रों में लोकप्रिय।
- सेरेमना: निचले क्षेत्रों में उगाई जाने वाली, अधिक बीज वाली किस्म।
भूमि की तैयारी और रोपाई
- भूमि ढलानदार व जल निकासी वाली होनी चाहिए।
- गड्ढे का आकार: 30×30×30 सेमी
- पौधों के बीच दूरी: 1.45 से 1.8 मीटर
- मानसून से पहले गड्ढों को गोबर खाद डालकर तैयार किया जाता है।
- रोपाई जून–जुलाई में की जाती है।
- एक परिपक्व टिलर के साथ 2–3 कलियों वाली रोपण सामग्री लगाई जाती है।
पौधा सामग्री और प्रसार
इलायची का प्रसार दो तरीकों से होता है:
- बीज: अधिक पौध तैयार करने में सहायक लेकिन उपज स्थिर नहीं रहती।
- सकर विधि: रोग-मुक्त और उच्च उत्पादक पौधों से लिया गया सकर ज्यादा उपज देता है।
पोषक प्रबंधन
- प्रति पौधा साल में दो बार (अप्रैल–मई और अगस्त–सितंबर) 5 किग्रा गोबर खाद डालें।
- नर्सरी में वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग बहुत लाभकारी है।
- रोपाई के समय माइक्रो न्यूट्रिएंट्स का मिश्रण डालना उपज बढ़ाने में मदद करता है।
सिंचाई और छाया प्रबंधन
- पहले वर्ष शुष्क महीनों (सितंबर–मार्च) में हर 10 दिन पर सिंचाई करें।
- पाइप, स्प्रिंकलर या नालियों से सिंचाई की जाती है।
- इलायची के लिए 50% छाया आदर्श होती है।
- अत्यधिक धूप से पत्तियाँ पीली हो सकती हैं।
खरपतवार प्रबंधन
- पहले 2–3 सालों में सालाना तीन बार निराई–गुड़ाई करें।
- पौधों के आसपास खरपतवार हटाकर सूखे अवशेष मल्च के रूप में डालें।
- फूल आने के समय अवशेष पुष्पक्रम पर नहीं डालना चाहिए।
उत्पादन और मुनाफा
- इलायची का पौधा रोपाई के बाद पहले 2 साल बढ़वार करता है।
- तीसरे–चौथे साल से प्रति हेक्टेयर 500–700 किलो उपज मिलने लगती है।
- बाजार भाव: ₹900 से ₹1200 प्रति किलो।
- किसान प्रति हेक्टेयर सालाना 2–3 लाख रुपये तक कमा सकते हैं।
निष्कर्ष
इलायची की खेती किसानों के लिए लाभदायक और स्थायी विकल्प है। इसकी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में लगातार बढ़ती मांग इसे एक बेहतरीन नकदी फसल बनाती है। सही जलवायु, मिट्टी और प्रबंधन तकनीकों के साथ इलायची से किसान अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं।

