तिलहन फसलों की पैदावार

सरसों की खेती और उन्नत किस्मों की भूमिका

भारत में तिलहन फसलों की पैदावार और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए लगातार अनुसंधान कार्य चल रहे हैं। इसी क्रम में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (एचएयू), हिसार ने सरसों अनुसंधान में बेहतरीन उपलब्धियां हासिल की हैं। विश्वविद्यालय को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार ग्वालियर में आयोजित अखिल भारतीय राया एवं सरसों अनुसंधान कार्यकर्ताओं की 32वीं बैठक के दौरान दिया गया।


सरसों की उन्नत किस्में और उनकी विशेषताएँ

विश्वविद्यालय द्वारा विकसित आरएच 1975 किस्म हाल के वर्षों में किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है।

  • औसत उपज: 11–12 क्विंटल प्रति एकड़
  • अधिकतम उपज क्षमता: 14–15 क्विंटल प्रति एकड़
  • तेल की मात्रा: लगभग 39.5%

इस किस्म की विशेषता यह है कि यह नमी और सूखा दोनों परिस्थितियों में अच्छी उपज देने की क्षमता रखती है। आने वाले रबी सीजन में इसका बीज किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा।

इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिकों ने आरएएचएच 2101, आरएच 1424 और आरएच 1706 जैसी हाइब्रिड किस्में भी विकसित की हैं। इनसे सरसों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी और यह हरियाणा के अलावा राजस्थान, यूपी, एमपी, बिहार और दिल्ली जैसे राज्यों में भी लोकप्रिय होंगी।


विश्वविद्यालय की उपलब्धियाँ और अनुसंधान

एचएयू की टीम अब तक 23 सरसों की किस्में विकसित कर चुकी है। इनमें से 2018 में आई आरएच 725 किस्म राजस्थान और बिहार जैसे राज्यों में बेहद सफल रही है। इसकी पैदावार 25–30 मण प्रति एकड़ तक मिल रही है।

इस उपलब्धि का श्रेय विश्वविद्यालय के प्रमुख वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को जाता है, जिन्होंने आधुनिक तकनीक और सतत प्रयासों से सरसों उत्पादन में अहम योगदान दिया है।


भविष्य की योजनाएँ

विश्वविद्यालय का लक्ष्य है ऐसी सरसों की किस्में विकसित करना जिनमें:

  • 40% से अधिक तेल की मात्रा हो
  • कम समय में पकने की क्षमता हो
  • जलवायु परिवर्तन और कीट-रोगों के प्रति अधिक सहनशीलता हो

इसके लिए वैज्ञानिक आधुनिक ब्रीडिंग तकनीक और जैव-प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर रहे हैं। साथ ही, किसानों को प्रशिक्षण शिविर, फील्ड डेमो और बीज वितरण कार्यक्रमों के माध्यम से नई तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।


निष्कर्ष

सरसों की नई उन्नत किस्में किसानों की आय बढ़ाने और तिलहन उत्पादन में सुधार करने में मदद करेंगी। इससे न केवल भारत की खाद्य तेल आयात पर निर्भरता कम होगी बल्कि देश आत्मनिर्भरता की दिशा में एक मजबूत कदम भी बढ़ाएगा।

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