डांगी गाय: विशेषताएँ, प्रकार और दूध उत्पादन जानकारी

डांगी गाय: विशेषताएँ, प्रकार और दूध उत्पादन जानकारी

डांगी मवेशी महाराष्ट्र के डांग घाटी और आसपास के पहाड़ी इलाकों की एक प्रमुख स्थानीय नस्ल है। यह नस्ल ठाणे, नासिक, अहमदनगर और गुजरात के डांग जिलों में पाई जाती है। डांगी गाय कठिन पर्यावरणीय परिस्थितियों में भी अच्छी तरह से काम कर सकती है और इसे “कनाड़ी” नाम से भी जाना जाता है। भारत में इस नस्ल की अनुमानित संख्या लगभग 2 से 2.5 लाख है।


मुख्य विशेषताएँ और उपयोगिता

  • डांगी गायें मजबूत, धीमी लेकिन टिकाऊ होती हैं।
  • भारी वर्षा वाले क्षेत्रों, दलदली धान के खेतों और ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाकों में कार्यक्षम।
  • खेत की जुताई, हल चलाने, लकड़ी लाने जैसे भारी कामों में उपयोग।
  • प्रति घंटे 2-3 मील की गति से भारी सामान ढोने में सक्षम।
  • दूध उत्पादन कम, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में दैनिक उपयोग के लिए पर्याप्त।

प्रकार – रंग के आधार पर वर्गीकरण

  1. पारा – सफेद शरीर पर काले धब्बे, नर अधिक मूल्यवान।
  2. बहाला – सफेद-काले मिश्रित, सफेद अधिक होने पर पांढरा बहाला, काला अधिक होने पर काला बहाला।
  3. मनेरी – मुख्यतः काले रंग के, कुछ सफेद धब्बे।
  4. लाल – लाल रंग के, हल्के सफेद धब्बे।
  5. लाल बहाला – लाल और सफेद रंग का मिश्रण।

शारीरिक बनावट और विशेषताएँ

  • मध्यम से बड़े आकार के, मजबूत और टिकाऊ शरीर।
  • गहरी छाती, मजबूत कंधे, छोटी पीठ।
  • छोटी लेकिन मजबूत टांगें, कठोर और काले खुर।
  • मध्यम मोटी त्वचा, प्राकृतिक तैलीय परत, सिर मध्यम आकार का, कान छोटे और सींघ मोटे।
  • नर वजन: 310–330 किग्रा, मादा वजन: 220–250 किग्रा।

दूध उत्पादन की जानकारी

  • पहली बार बछड़ा देने की औसत उम्र: 46–56 महीने।
  • बछड़ों के बीच औसत अंतराल: 17–21 महीने।
  • औसत दुग्ध उत्पादन: 530 किग्रा प्रति दुग्धकाल (औसतन 269 दिन)।
  • दूध में वसा की मात्रा: 3.8% – 4.5%।

निष्कर्ष

डांगी मवेशी एक मजबूत और मेहनती नस्ल है, जो सह्याद्री क्षेत्र की कठोर परिस्थितियों में भी काम कर सकती है। दूध उत्पादन सीमित होने के बावजूद इसकी उपयोगिता, सहनशीलता और कार्यक्षमता इसे आदिवासी और पहाड़ी क्षेत्रों के किसानों के लिए अत्यंत मूल्यवान बनाती है।

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