भारत में गायों की नस्लें – भारत की प्रमुख दुग्ध उत्पादक नस्लें

भारत सदियों से पशुपालन और कृषि पर आधारित देश रहा है। यहाँ की गायें न केवल दूध और दुग्ध उत्पादों का प्रमुख स्रोत हैं, बल्कि ग्रामीण जीवन, धार्मिक परंपराओं और किसानों की आजीविका का अभिन्न हिस्सा भी हैं।

भारत में लगभग 50 से अधिक गायों की नस्लें पाई जाती हैं, जिन्हें दूध उत्पादन, श्रम कार्य और दोनों उद्देश्यों के लिए पाला जाता है। इनमें से कई नस्लें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिद्ध हैं।


भारत में गायों की नस्लों का वर्गीकरण

भारतीय गायों की नस्लों को उनके उपयोग के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा गया है:

1. दुग्ध उत्पादक नस्लें (Milch Breeds)

इन गायों का दूध उत्पादन सबसे अधिक होता है, जबकि इनके बैल श्रम कार्यों में अपेक्षाकृत कमजोर होते हैं।

  • प्रमुख नस्लें – साहीवाल, गिर, रेड सिंधी, थारपारकर
  • औसत दूध उत्पादन – 1600 किलोग्राम से अधिक
2. दुग्ध और कार्य हेतु नस्लें (Dual Purpose Breeds)

इन नस्लों की गायें औसत मात्रा में दूध देती हैं और बैल कृषि व श्रम कार्यों में उपयोगी होते हैं।

  • प्रमुख नस्लें – हरियाणा, कांकरेज, थारपारकर
  • दूध उत्पादन – 500 से 1500 किलोग्राम
3. श्रम कार्य हेतु नस्लें (Draught Breeds)

इन नस्लों की गायें कम दूध देती हैं लेकिन बैल खेत जोतने और भार ढोने में सक्षम होते हैं।

  • प्रमुख नस्लें – हल्लिकर, अमृतमहल, कंगायम
  • विशेषता – 1000 किलोग्राम तक भार खींचने और दिनभर काम करने की क्षमता

भारत की प्रमुख दुग्ध उत्पादक नस्लें

1. गिर नस्ल
  • उत्पत्ति: गुजरात का सौराष्ट्र क्षेत्र (गिर जंगल)
  • विशेषताएँ: सफेद शरीर पर भूरे/लाल धब्बे, अर्धचंद्राकार सींग
  • दूध उत्पादन: 1200 – 2200 किलोग्राम
  • प्रसिद्धि: उच्च सहनशीलता और अच्छा दूध स्वाद
2. साहीवाल नस्ल
  • उत्पत्ति: पाकिस्तान का मोंटगोमरी क्षेत्र
  • अन्य नाम: लोला, मोंटगोमरी, मुल्तानी
  • रंग: हल्का लाल से पीला, सफेद धब्बों के साथ
  • दूध उत्पादन: 1600 – 3500 किलोग्राम (भारत की सबसे अधिक दूध देने वाली नस्ल)
  • दूध की गुणवत्ता: 4.5% – 5.5% वसा
3. रेड सिंधी नस्ल
  • उत्पत्ति: कराची और हैदराबाद क्षेत्र
  • रंग: गहरा लाल, कभी-कभी सफेद धारियों के साथ
  • दूध उत्पादन: 1250 – 2200 किलोग्राम
  • विशेषता: आसान पालन और रोग प्रतिरोधक क्षमता

द्वैत उपयोगी प्रमुख नस्लें

1. थारपारकर नस्ल
  • उत्पत्ति: थारपारकर (पाकिस्तान) व राजस्थान
  • अन्य नाम: व्हाइट सिंधी, थारी
  • रंग: सफेद या हल्का ग्रे
  • दूध उत्पादन: 1800 – 2600 किलोग्राम
  • बैल: खेती व भार ढोने में सक्षम
2. हरियाणा नस्ल
  • उत्पत्ति: हरियाणा (रोहतक, हिसार, जींद, गुरुग्राम)
  • दूध उत्पादन: 800 – 1600 किलोग्राम
  • बैल: मजबूत और खेत जोतने के लिए उपयुक्त
3. कांकरेज नस्ल
  • उत्पत्ति: गुजरात (कच्छ) व राजस्थान (जोधपुर, बारमेर)
  • रंग: सिल्वर ग्रे से स्टील ग्रे
  • दूध उत्पादन: लगभग 1500 किलोग्राम
  • विशेषता: तेज चाल और श्रम क्षमता

खेती के कार्य के लिए प्रमुख नस्लें

1. हल्लिकर नस्ल
  • उत्पत्ति: कर्नाटक
  • रंग: ग्रे या गहरा ग्रे
  • विशेषता: बेहतरीन ट्रॉटिंग क्षमता और भार खींचने की ताकत
2. अमृतमहल नस्ल
  • उत्पत्ति: कर्नाटक (हासन, चिकमंगलूर, चित्रदुर्ग)
  • रंग: ग्रे से काला, थूथन और पूंछ काले
  • सींग: लंबे और नुकीले
3. कंगायम नस्ल
  • उत्पत्ति: तमिलनाडु (ईरोड, कोयंबटूर)
  • रंग: सफेद या ग्रे, बैलों में काले निशान
  • विशेषता: खेत जोतने और गाड़ी खींचने में दक्ष

निष्कर्ष

भारत में गायों की नस्लें न केवल किसानों की अर्थव्यवस्था का आधार हैं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का भी हिस्सा हैं। चाहे वह साहीवाल और गिर जैसी दुग्ध उत्पादक नस्लें हों या अमृतमहल और कंगायम जैसी श्रम प्रधान नस्लें, सभी का भारतीय ग्रामीण जीवन में विशेष योगदान है।

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