कुकुरमुत्ता और मशरूम: क्या है अंतर और कैसे होती है खेती?

कुकुरमुत्ता और मशरूम: सम्पूर्ण जानकारी

मशरूम का सेवन प्राचीन काल से ही खाद्य और औषधीय उपयोगों में किया जा रहा है। आज इसकी लोकप्रियता और मांग तेजी से बढ़ रही है क्योंकि इसमें वसा कम और प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। पहले यह सीमित देशों तक ही सीमित था, लेकिन अब पूरी दुनिया में मशरूम पसंद किया जा रहा है। भारत में विशेषकर शाकाहारी लोगों के लिए यह पोषण का एक सशक्त स्रोत बन गया है।

मशरूम की कई प्रजातियां होती हैं, जिनमें से कुछ खाने योग्य और कुछ जहरीली होती हैं। कुकुरमुत्ता इन्हीं में से एक है, लेकिन दोनों में कुछ अंतर भी मौजूद हैं।


कुकुरमुत्ता और मशरूम – क्या अंतर है?

आमतौर पर लोग मशरूम को ही कुकुरमुत्ता कहते हैं, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से दोनों एक समान नहीं हैं। कुकुरमुत्ता के बारे में यह भ्रांति है कि यह कुत्ते के मूत्र से उत्पन्न होता है, जबकि वास्तव में यह सही नहीं है।

मशरूम फंगी का एक प्रकार है, जो पौधा नहीं होता। इसमें जड़, पत्ते या तना जैसी संरचनाएं नहीं होतीं। कई प्रजातियां खाने योग्य होती हैं, लेकिन कुछ जंगली मशरूम जहरीले भी हो सकते हैं। इसीलिए बिना पहचान किए किसी भी जंगली मशरूम का सेवन खतरनाक हो सकता है।


मशरूम की खेती कैसे करें?

मशरूम की खेती कृषि अवशेषों जैसे धान-गेहूं का पुआल, ज्वार-बाजरे की भूसी, मक्का के डंठल और गन्ने की खोई पर की जाती है। इन अवशेषों को अच्छी तरह सुखाकर प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि अधिक नमी फसल की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। मशरूम उत्पादन में आमतौर पर सूखा पुआल सबसे ज्यादा उपयोग होता है।

खेती में उत्पादन कक्ष की स्वच्छता और नियंत्रित तापमान बनाए रखना भी जरूरी है।


मशरूम उत्पादन की मुख्य तकनीकें

  1. शेल्फ विधि – लकड़ी की तख्तियों और लोहे के फ्रेम से बने शेल्फ में कम जगह में अधिक उत्पादन संभव।
  2. पॉलीथीन बैग विधि – 200 गेज मोटे बैग में मशरूम उगाए जाते हैं, यह सबसे आसान और लोकप्रिय तरीका है।
  3. ट्रे विधि – इसमें मशरूम को ट्रे में उगाया जाता है, जिससे इन्हें आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है।

निष्कर्ष

मशरूम और कुकुरमुत्ता दोनों फंगी समूह के अंतर्गत आते हैं, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से इनमें अंतर है। मशरूम की खेती कम लागत में शुरू की जा सकती है और यह किसानों के लिए एक उभरता हुआ व्यवसाय है। सही तकनीक, स्वच्छता और प्रबंधन के साथ किसान इससे अच्छी आमदनी अर्जित कर सकते हैं।

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