भारत में वनीला की खेती मुख्य रूप से केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, पूर्वोत्तर राज्यों और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में की जाती है। वनीला दुनिया का दूसरा सबसे महंगा मसाला माना जाता है, और इसकी खेती किसानों के लिए अत्यधिक लाभकारी हो सकती है। यदि आप वनीला फार्मिंग की योजना बना रहे हैं, तो इसके लिए मिट्टी, जलवायु, खाद, रोपण और सिंचाई से जुड़ी सही जानकारी होना बेहद ज़रूरी है।
मिट्टी और जलवायु
- वनीला के लिए उपजाऊ और जैविक तत्वों से भरपूर मिट्टी जरूरी है।
- खेत में जलजमाव से बचना चाहिए, क्योंकि इससे पौधे सड़ सकते हैं।
- चिकनी मिट्टी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।
- आदर्श तापमान: 25–30 डिग्री सेल्सियस।
- नमी और आर्द्र वातावरण वाली जगह वनीला के लिए सबसे अच्छी होती है।
खेत की तैयारी
- वनीला की जड़ों के लिए भुरभुरी मिट्टी अधिक फायदेमंद होती है।
- खेत की 2–3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए।
- हल्की ढलान वाला क्षेत्र जल निकासी के लिए उपयुक्त है।
- अतिरिक्त पानी आसानी से बाहर निकलने की व्यवस्था होनी चाहिए।
खाद और उर्वरक प्रबंधन
- एक पौधे के लिए औसतन:
- 40–60 ग्राम नाइट्रोजन
- 20–30 ग्राम फॉस्फोरस
- 60–100 ग्राम पोटाश
- जैविक खेती के लिए गोबर की खाद और वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए।
- इससे मिट्टी की गुणवत्ता और पौधों की उत्पादकता दोनों बढ़ती हैं।
रोपण विधि
- वनीला की रोपाई कटिंग्स से अधिकतर की जाती है, क्योंकि बीज नाजुक होते हैं।
- रोपाई से पहले गड्ढे में खाद डालकर कटिंग लगाई जाती है।
- पौधों के बीच दूरी: लगभग 8 फीट।
- बेलों को सहारा देने के लिए पेड़ या खंभों का उपयोग करना ज़रूरी है।
सिंचाई और फसल तुड़ाई
- सिंचाई का समय मौसम और मिट्टी की नमी पर निर्भर करता है।
- फूल आने के बाद फलियों को पकने में 6–9 महीने लगते हैं।
- जब फलियाँ पीले रंग की होने लगें तो उन्हें तोड़ लेना चाहिए।
- इन फलियों की लंबाई औसतन 12 से 25 सेंटीमीटर होती है।
विशेष सुझाव और मुनाफा
- वनीला को छायादार स्थानों पर उगाना सबसे लाभदायक है।
- बड़े पेड़ों के नीचे या शेड नेट के अंतर्गत यह खेती ज्यादा सफल रहती है।
- अंतरराष्ट्रीय बाजार में वनीला की जबरदस्त मांग है, जिससे किसानों को निर्यात का अवसर मिलता है।
- छोटे किसान भी सही प्रबंधन के साथ वनीला खेती से लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं।
निष्कर्ष
वनीला की खेती एक बेहतरीन व्यावसायिक विकल्प है। यह न केवल किसानों को अधिक लाभ देती है, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी है। इसकी बढ़ती मांग और उच्च कीमत इसे एक आर्थिक रूप से मजबूत बनाने वाला फसल विकल्प बनाती है।

